आज Mother’s Day है,
सब तेरी तारीफों के पुल बांधे,
हो भी क्यों ना, तू है ही तारीफ के काबिल।
पर मां, मुझे तुझसे है शिकायत मुकम्मल।
कुछ सवाल है जो पूछना चाहती हूं,
वो बात और है, कि उनका जवाब ‘ तेरे ‘ रूप में पाती हूं।
क्यों तूने मेरे हर छोटे काम को सराहा था,
जब तुझे पता था कि मेरा कोई काम गिनती में ना आएगा?
क्यों तूने मुझे अपने लिए आवाज उठाना सिखाया था,
जब तुझे पता था मेरा बोलना भी विद्रोह कहलाएगा?
क्यों तूने मुझे सही गलत का फर्क समझाया था,
जब तुझे पता था उसका कोई मायना ना रह जाएगा?
क्यों तूने मेरी फरमाइशों पर गौर फ़रमाया था,
जब तुझे पता था कि मेरी फरमाइशों का कोई मोल ना रह जाएगा?
क्यों तूने मेरी आंखों से आंसुओं को भगाया था,
जब तुझे पता था कि मेरे आंसू पोंछने कोई ना आएगा?
क्यों तूने मुझे खुद से दूर कर के भी आत्म-निर्भर बनाया था,
जब तुझे पता था कि मेरे पांवों को बेड़ियों से बांध दिया जाएगा?
क्यों तूने मुझे राजकुमारी की तरह सहलाया था,
जब तुझे पता था कि मुझे “मोम की गुड़िया” समझा जाएगा?
शायद यही सवाल तुझे भी अपनी मां से करने होंगे,
तुझे जो ना मिला तूने मुझे वो देना चाहा होगा।
अपने अधूरे सपने तूने मुझमें ढूंढे होंगे,
तू जो ना कर पाई मुझे करते देखना चाहा होगा।
मुझे लेकर तूने कई ख्वाब बुने होंगे,
उनको पूरा करने का हौसला देना चाहा होगा।
तूने समय के चक्र को बदलते देखा है,
दुनिया से कदम मिला कर चल सकूं, ये भी चाहा होगा।
यही कहकर खुद को मना लेती हूं मैं, मां,
क्योंकि इनका जवाब ‘तेरे’ रूप में मैं पाती हूं, मां।